बिना इंटरनेट और मोबाइल के रिश्तें कैसे निभाए जाते हैं यह दो बहनों ने सिखाया
इंसान एक सामाजिक प्राणी है, ऐसा कई बार हमने सुना है। इसी समाज में एक बार और कहीं जाती है कि रिश्ते बनाना आसान होता है मुश्किल होता है तो उन्हें बनाए रखना और निभाना। टेक्नॉलोजी के जमाने में जहां हर चीज मोबाइल पर उपलबध है, ऐसे में हम अपने करीबी रिश्तों से भी दूर होते जा रहे हैं। इंटरनेट ने दुनिया का आकार भले ही मोबाइल में लाकर रख दिया हो, परंतु यह भी सच है कि इंटरनेट के कारण ही इंसान अकेला हो गया है। इंसान के इस अकेलेपन का इलाज क्या है ? यह एक सवाल है परंतु इसका जवाब दिया है भारतीय मूल की दो अमेरिकी बहनों ने। जिन्होंने अपने दादा-दादी जैसे हजारों लोगों से एक अनकहा सा रिश्ता जोड़ लिया है। ये सब उन्होंने बिना इंटरनेट और बिना मोबाइल के संभव किया है।
पहली बार देखी ऐसी महामारी…
दरअसल, कोरोना महामारी (COVID-19 pandemic) का वो भयानक दौर पूरी दुनिया के लिए एक सबक है। ऐसे में भारतीय मूल की दो अमेरिकी बहनें दुनियाभर के बुजुर्गों को चिट्ठी (Letters) लिखकर उनका अकेलापन दूर कर रही हैं। कोरोना (corona) महामारी शुरू होने के बाद से वे 15 लाख चिट्ठियां लिख चुकी हैं। दरअसल, मैसाचुसेट्स की श्रेया पटेल (Shreya Patel) और उनकी छोटी बहन (sister) सेफ्रॉन (Saffron) 2020 की शुरुआत में कोरोना के दौरान अपने दादा-दादी के साथ समय नहीं बिता पाईं। ऐसे में उन्हें खुश करने के लिए दोनों बहनों ने वीडियो कॉल करना शुरू कर दिया, लेकिन श्रेया को लगता था कि कहीं कुछ कमी रह गई है।
श्रेया पटेल हाई स्कूल पास करने के बाद कॉलेज में दाखिला लेने वाली थी, जब कोविड-19 महामारी ने पहली बार यू.एस.में एंट्री की। कोरोना की वजह से श्रेया पटेल और सेफ्रॉन अपने दादा-दादी से दूर हो गईं। बोस्टन निवासी दोनों बहनों ने पहली बार एक दम बदल चुकी दुनिया का सामना किया। ऐसे में हर दिन अपने दादा-दादी को फोन करना शुरू कर दिया।
श्रेया पटेल कहती हैं कि, हमारे दादा-दादी बहुत बही सामाजिक लोग हैं – मेरी दादी मुझसे ज्यादा जिम जाती हैं। इसलिए दादी का अपने अपार्टमेंट में अकेला होना, उनके लिए वास्तव में कठिन था। लेकिन फोन कॉल के बावजूद, जैसे-जैसे लॉकडाउन लंबा खिंचता गया, पटेल बहनें देख सकती थीं कि उनकी दादी संघर्ष कर रही हैं। श्रेया पटेल ने याद करते हुए कहा, ‘‘और फिर उसके एक दोस्त ने उसे एक पत्र भेजा और यह सिर्फ सुंदर नहीं था, बल्कि हाथ से तैयार इंद्रधनुष था। ‘‘इस पत्र ने दोनों बहनों के पूरी तरह से बदल दिया।
भारतीय मूल की दो अमेरिकी बहनें …
अब भारतीय मूल की दो अमेरिकी बहनें दुनियाभर के बुजुर्गों को चिट्ठी लिखकर उनका अकेलापन दूर कर रही हैं। कोरोना महामारी शुरू होने के बाद से वे 15 लाख चिट्ठियां लिख चुकी हैं। दरअसल, मैसाचुसेट्स की श्रेया पटेल और उनकी छोटी बहन सेफ्रॉन 2020 की शुरुआत में कोरोना के दौरान अपने दादा-दादी के साथ समय नहीं बिता पाईं। ऐसे में उन्हें खुश करने के लिए दोनों बहनों ने वीडियो कॉल करना शुरू कर दिया, लेकिन श्रेया को लगता था कि कहीं कुछ कमी रह गई है।
कैसे शुरू हुई अंगेस्ट आइसोलेशन संस्था…
श्रेया बताती हैं कि हम दादा-दादी को हर दिन फोन और मैसेज करते थे, लेकिन फिर भी वे खुद को अकेला महसूस करते थे। श्रेया बताती हैं कि एक दिन मेरी दादी के एक दोस्त ने उन्हें चिट्ठी लिखी। यही वो चिट्ठी थी, जिसने लेटर अंगेस्ट आइसोलेशन संस्था की शुरुआत में अहम भूमिका निभाई। इस संस्था ने 7 देशों में 5 लाख से ज्यादा लोगों को चिट्ठी लिखने के लिए प्रेरित किया। बीते दो साल में उनकी संस्था 15 लाख चिटि्ठयां भेज चुकी हैं। इस काम के लिए उन्हें 2022 का प्रतिष्ठित डायना अवॉर्ड भी दिया गया है।
हफ्तेभर में 200 बुजुर्गों को लिखी चिट्ठियां…
श्रेया बताती हैं कि हमें लगा कि चिटि्ठयों से हम अकेलेपन से जूझ रहे बुजुर्गों में सकारात्मकता ला सकते हैं। उन्होंने वृद्धाश्रम और केयर होम में रहने वाले बुजुर्ग लोगों को चिट्ठी, आर्टवर्क और पॉजिटव मैसेज भेजना शुरू कर दिए। जल्द ही वे बुजुर्गों में लोकप्रिय हो गईं। श्रेया कहती हैं, ‘हफ्तेभर में ही हम 200 से ज्यादा वरिष्ठ नागरिकों को चिटि्ठयां लिख चुके थे। तब हमें मदद की जरूरत महसूस होने लगी थी।
वहीं, जिन लोगों को ये चिटि्ठयां मिलीं, उनकी जिंदगी और जीने के मायने बदल गए। इस दौरान हमें पता चला कि ये बुजुर्ग न सिर्फ चिटि्ठयां संभालकर रखते हैं, बल्कि दूसरों को दिखाते भी हैं। वे अपने घरों में इन्हें सजाते हैं, इन्हें बार-बार देखते हैं और पढ़कर इनसे प्रेरणा लेते हैं।’ दोनों बहनों का अभियान सफल रहा। शुरुआती दो महीनों में ही अमेरिका के 11 राज्यों में इनकी चिटि्ठयां उम्मीद जगाने लगी थीं। पत्रों की बढ़ती मांग को देखते हुए, अप्रैल-2020 में इन्होंने लेटर अंगेस्ट आइसोलेशन शुरू करने का फैसला लिया।
संस्था के दुनियाभर में 40 हजार से ज्यादा वॉलंटियर…
अब इस संस्था के दुनियाभर में 40 हजार से ज्यादा वॉलंटियर हैं। इन्हीं के जरिए अकेले रह रहे बुजुर्गों की जानकारी मिलती है। अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और इजराइल में 10 लाख से ज्यादा, वहीं अन्य देशों में पांच लाख बुजुर्ग चिटि्ठयां पाकर सकारात्मकता महसूस कर रहे हैं।
श्रेया कहती हैं,‘भले ही वैक्सीनेशन ने बुजुर्गों को घुलने-मिलने और बातचीत की आजादी दी है। पर अकेलेपन का मुद्दा कायम है। यह ऐसी महामारी है, जो कोरोना से पहले भी हमारे बीच मौजूद थी और आगे भी बनी रहेगी। इस पहल के बाद श्रेया और सेफ्रॉन देश-दुनिया में चर्चित हो गई हैं। वे अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की उद्घाटन समिति के कार्यक्रम के लिए मेजबानी कर चुकी हैं। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने भी इन्हें आमंत्रित कर चुकी है। यह संस्था तेजी से ऊंचाई पर जा रही है। हाल ही में इन्होंने एक स्टैम्प फंड लॉन्च किया है, ताकि वॉलेंटियर्स को पैसों की समस्या न झेलनी पड़े और वे बुजुर्गों को लगातार चिटि्ठयां लिखते रहें।
श्रेया को मिला डायना अवार्ड…
इस अनूठे अभियान को द न्यूयॉर्क टाइम्स, वॉशिंगटन पोस्ट जैसे दुनिया के 25 शीर्ष वैश्विक अखबारों ने सराहा है। जॉनसन एंड जॉनसन जैसी बड़ी कंपनियां अब दोनों बहनों के साथ कार्यक्रम आयोजित करती है। समाज के लिए इस अभूतपूर्व योगदान के चलते श्रेया पटेल को 2022 का डायना अवॉर्ड दिया गया है। प्रिसेंस डायना की याद में हर साल ये अवॉर्ड उन बच्चों और युवाओं को दिया जाता है, जिन्होंने समाज के लिए कुछ बेहतर किया है।