inspirational: दादी में नौजवानों जैसी फु्र्ती, कोरोना में पति की मृत्यु के बाद बड़े बेटे ने साथ छोड़ा तो करनी लगीं ये काम
ये जिंदगी एक दौड़ है। कोई शोहरत के लिए दौड़ता है तो कोई दौलत के लिए, दौड़ते सब हैं लेकिन सिर्फ अपने-अपने मतलब के लिए। या फिर यूं कहें कि जिंदगी में हर कोई सिर्फ अपने बारे में सोंचता है और अपनी ही जरूरतों को पूरा करने में पूरी जिंदगी उलझा रहता है। ना तो कोई दूसरों की जिंदगी बेहतर बनाने के बारे में सोचता है और ना ही किसी की मदद के लिए कोई अपनी व्यस्त जिंदगी से थोड़ा समय निकालने की कोशिश करता है। हालांकि स्वार्थ से भरी इसी दुनिया में आज भी चंद लोग हैं जो देश या दूसरों की समस्या के बारे में सिर्फ सोंचते ही नहीं बल्कि इस दिशा में अपने जुनून से कुछ करके भी दिखाते हैं। दूसरों की मदद ही उनकी जिंदगी का मकसद होता है। वो दूसरों के दर्द को अपना दर्द समझते हैं और अपनी पूरी जिंदगी इंसानियत के नाम कर देते हैं।
गुजरात के सूरत का सिविल हॉस्पिटल का स्टाफ उन्हें दादी कहता है। वह 65 वर्ष की उम्र में भी इतनी सक्रिय रहती हैं कि युवा भी मात खा जाएं। उनकी सक्रियता ने इमरजेंसी में आए कई मरीजों की जान बचाई है। हम बात कर रहे हैं 65 वर्षीय बेला गोकुल साबे की। कोरोना में बेला के पति की मृत्यु के बाद जिस बड़े बेटे से सबसे ज्यादा सहारे की उम्मीद थी, उसी ने छोड़ दिया। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
बेला ने अपनी कमाई से छोटे बेटे को पाला-पोसा और उसकी शादी करवाई। वह सिविल हॉस्पिटल के मरीजों की सेवा अपने बच्चों की तरह करती हैं। बेला अपनी जिंदादिली से सबकी चहेती दादी बन गई हैं। वह 10 वर्षों से सिविल हॉस्पिटल में सर्वेंट के रूप में काम कर रही हैं। सिविल हॉस्पिटल के अन्य कर्मचारियों ने बताया कि दादी पिछले कई वर्षों से मरीजों की सेवा करती आ रही हैं।
उन्होंने कई लावारिस मरीजों की अपने बच्चों की तरह सेवा की है। मरीज डिस्चार्ज होने के बाद भी उन्हें करते हैं। वह मरीजों के स्ट्रेचर, व्हील चेयर ट्रामा सेंटर के 4 मीटर उंचे स्लोप से खींच कर वार्ड में ले जाती हैं। वह अपनी सक्रियता से इमरजेंसी में आए कई मरीजों की जान बचा चुकी हैं। वह हर स्टॉफ के लिए प्रेरणा हैं।
जो काम मिलता है बिना हिचकिचाए करती हैं…
बेला साबे मरीजों का स्ट्रेचर खींच कर एक वार्ड से दूसरे वार्ड तक ले जाती हैं। इसके अलावा वह जरूरतमंद मरीजों की रिपोर्ट निकलवाने, दवाई लेने, भोजन करवाने, उनके मल-मूत्र तक साफ करने का काम भी बिना हिचकिचाए करती हैं। बेला बेन का कहना है कि ऐसा कोई काम नहीं है, जो मैं नहीं कर सकती। मुझे जो भी काम दिया जाता है उसे पूरी शिद्दत से करती हूं।
बेला बेन ने कोरोना के दौरान पति को खोया…
महाराष्ट्र की मूल निवासी और सूरत के नीलगिरी क्षेत्र में रहने वाली 65 वर्षीय बेला गोकुल साबे ने अपने गांव में कक्षा 4 तक की पढ़ाई की है। 15 साल की उम्र में ही उनकी शादी हो गई थी। उनके पति काम की तलाश में सूरत आए थे। वह ड्राइवर थे। कोरोना में उनका देहांत हो गया था, फिर भी हार नहीं मानी। 26 वर्षीय बड़े बेटे ने उन्हें छोड़ दिया। बोला ने हार नहीं मानी। काम करके छोटे बेटे की शादी करवाई।