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भोपाल की रानी कमलापति की कहानी, बहादुरी की बेमिसाल गाथा

भोपाल की रानी कमलापति की कहानी, बहादुरी की बेमिसाल गाथा

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भोपाल के कमला पार्क में रानी कमलापति का महल स्थित है। इनके नाम पर शहर में आर्च ब्रिज का निर्माण भी किया गया है। 29 दिसंबर 2020 को भोपाल में रानी कमलापति आर्च ब्रिज का शुभारंभ किया गया। यह ब्रिज नए और पुराने भोपाल को जोड़ने में सहायक है। इस ब्रिज का नाम जिस रानी कमलापति पर रखा गया है, उनकी कहानी काफी दिलचस्प है। आइए, एक नजर डालते हैं बहादुरी की बेमिसाल गाथा लिखने वाली रानी की जिंदगी पर…

रानी कमलापति की कहानी….

रानी कमलापति की कहानी की अगर बात करें तो यह शुरू होती है उस वक्त करीब भोपाल से 50 किलोमीटर दूर स्थित गिन्नौर गढ़ नामक अति छोटी लेकिन महत्वपूर्ण रियासत के राजा निजाम शाह से। निजाम शाह गौड़ राजा थे और कहा जाता है कि उनकी सात पत्नियां थी। इनमें से एक थी रानी कमलापति। यह राजा की सबसे प्रिय पत्नी थी और प्रिय हो भी क्यों नहीं, क्योंकि कहा जाता है कि रानी परियों की तरह खूबसूरत थीं। उस वक्त एक कहावत काफी प्रचलित थी कि ताल है तो भोपाल ताल और बाकी सब हैं तलैया। रानी थी तो कमलापति और सब हैं गधाइियां…।

आज का भोपाल उस समय एक छोटा सा गांव हुआ करता था, जिस पर निजाम शाह की हुकूमत थी। आपने एक कहावत तो सुनी ही होगी कि हमें तो अपनों ने लूटा गैरो में कहा दम था। ऐसा ही कुछ हुआ निजाम शाह के साथ। दरअसल, निजाम शाह के भतीजे आलम शाह का बाड़ी पर शासन था और उसे अपने चाचा निजाम शाह से काफी इर्ष्या थी। ऐसा कहा जाता है कि उसे निजाम शाह की दौलत, संपत्ति और कमलापति की खूबसूरती से इर्ष्या थी। कहते हैं कि आलम शाह रानी कमलापति पर मोहित हो गया था और उसने रानी से अपने प्यार का इजहार भी किया था, लेकिन रानी ने उसे ठुकरा दिया था।

एक शाम भतीजा आलम शाह अपने चाचा निजाम शाह को दावत पर बुलाता है और षडयंत्र से उनके खाने में जहर मिलाकर उनकी हत्या कर देता है। इन षडयंत्रकारियों से को खुद बचाने के लिए रानी कपलापति अपने एक मात्र पुत्र नवल शाह को गिन्नोर गढ़ से भोपाल के रानी कमलापति महल लेकर आ जाती हैं। निजाम शाह की मृत्यु के बाद रानी कमलापति बेहद दुखी और बेचैन रहती थीं। वह अपने शौहर की मौत का बदला लेना चाहती थीं, लेकिन फौज और पैसे की कमी के कारण वह मजबूर थीं।

दोस्त मोहम्मद खान से ऐसे हुई मुलाकात…

इसी दौरान दोस्त मोहम्मद खान की एंट्री होती है। दोस्त मोहम्मद खान एक तनख्वादार मुलाजिम था जो लोगों पैसे लेकर बदले में उनकी मदद किया करता था। वह अब तक जगदीशपुर पर अपनी हुकूमत कायम कर चुका था। रानी कमलापति और दोस्त मोहम्मद की भी एक दिलचस्प कहानी है। दोस्त मोहम्मद कभी-कभी भोपाल के बड़े तलाब मछलियों का शिकार करने आया करते थे और उस वक्त यह तलाब रानी की जागीर हुआ करती थी, जहां मछलियों का शिकार करना मना था। जब यह बात रानी तक पहुंची तो उन्होंने आदेश दिया कि अगर अगली बार दोस्त मोहम्मद शिकार करने आए तो उन्हें उनके सामने पेश किया जाए।

कुछ दिनों बाद दोस्त मोहम्मद फिर शिकार करने आते हैं और उनको सूचना मिलती है कि आपको रानी के सामने पेश होना होगा। दोस्त मोहम्मद बेखौफ होकर रानी के दरबार पहुंचते हैं। उन्हें यहां बुलाने की वजह भी बताई गई। इसके विपरीत रानी कमलापति, दोस्त मोहम्मद के मर्दाना व्यक्तिव और शान-औ-शौकत देखकर असल शिकायत भूलकर उनके करीब आना शुरू करती हैं। जब रानी को पता चलता है कि दोस्त मोहम्मद जगदीशपुर पर कब्जा कर चुके हैं तो रानी अपना असल मुद्दा बयां करती हैं और अपने पति की मौत का बदला लेने के लिए दोस्त मोहम्मद से मदद मांगती हैं।

ऐसा कहा जाता है कि दोस्त मोहम्मद एक लाख रुपए के बदले रानी की मदद के लिए तैयार हो जाते हैं। इसके बाद दोस्त मोहम्मद बाड़ी के राजा पर हमला कर उनकी हत्या कर देता है। दोस्त मोहम्मद के इस काम से रानी बहुत खुश होती हैं, लेकिन तय सौदे के मुताबिक वह 1 लाख रुपए नहीं दे पाती हैं। बदले में वह दोस्त मोहम्मद को भोपाल का एक हिस्सा दे देती हैं। जब दोस्त मोहम्मद भोपाल पर अपना शासन जमाने निकले तो उनका युद्ध रानी कमलापति के बेटे नवल शाह से हुआ। ऐसा कहा जाता कि उस युद्ध में इतना खून वहां था कि वह धरती लाल हो गई थी और आज उसी जगह को लालघाटी के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में नवल शाह को हार का सामना करना पड़ा और दोस्त मोहम्मद का भोपाल पर एकाधिकार हो गया था।

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