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स्त्री समानता की अनोखी कहानी, महिला मैकनिक की जुबानी

स्त्री समानता की अनोखी कहानी, महिला मैकनिक की जुबानी

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जहां चाह वहां राह, इस कहावत को सच कर दिखाया है मध्यप्रदेश के इंदौर शहर की महिला मैकनिकों ने। सफलता पाने की इनकी दृढ़ इच्छा शक्ति की वजह से इन्हें सम्मान और पैसा दोनों मिला। इनकी कहानी सिखाती है कि जब आप कुछ ठान लेते हैं तो देर से ही भले, सफलता जरूर मिलती है। छोटे स्तर से शुरू करते हैं तो आपको ज्यादा धैर्य की जरूरत होती है। जब भी मैकनिक की बात होती है तो सिर्फ पुरुषों का ख्याल आता है। लेकिन मध्यप्रदेश के इंदौर में महिला मैकिनक को गाड़ी ठीक करते हुए देख सभी हैरान हैं। 26 अगस्त को महिला समानता दिवस पर हम ऐसी ही महिलाओं के हौंसले से भरी कहानियों से आपको रूबरू करा रहे हैं।

इन स्त्रियों का साहस उन सभी पूर्वाग्रहों को तोड़ता है जिनके मुतााबिक वे अक्सर कमतर, कमज़ोर आंकी जाती हैं। इनके सामर्थ्य पर सवाल उठे तो इन्होंने वो कर दिखाया जो माना जाता था कि सिर्फ पुरुष कर सकते हैं। चूंकि पढ़ाई के अवसर नहीं मिले इसलिए कौशल को चुनते हुए ये मैकेनिक बनीं। यंत्रिका मध्यप्रदेश का पहला ऐसा ऑटोमोबाइल सर्विस सेंटर है, जहां सिर्फ महिलाएं काम करती हैं। गांवों और पिछड़े इलाकों से आईं ये वो स्त्रियां हैं जो अपने परिवार के लिए बेहतर ज़िंदगी चाहती हैं। महिलाओं को परेशानियों से आजादी दिलाने के लिए शहर की एक संस्था ने महिला बाइक सर्विस सेंटर ‘यंत्रिका” की शुरुआत की है। पालदा में प्रदेश का यह पहला ऐसा सेंटर हैं, जहां महिलाएं ही मैकेनिक हैं। वाहन खराब होने पर कई महिलाएं अकेले गाड़ी लेकर पुरुष मैकेनिक के पास जाने में हिचकिचाहट महसूस करती हैं। इसी को ध्यान में रख संस्था ने यह पहल की है। यहां महिला मैकेनिक महिलाओं के ही दोपहिया वाहन सुधारती हैं।

मेहनत कर सम्मान से जी सकूं …

ट्रेनिंग लेकर कुशल मैकेनिक बन चुकी 25 साल की आशा साल्वे ने बताया कि परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। इसलिए 12वीं के बाद पढ़ नहीं सकी मैं। 12वीं पास हूं इसलिए भृत्य से ज्यादा कोई काम देता नहीं। मैं ऐसा काम करना चाहती थी जिसमें सम्मान मिले। इसलिए मैकेनिक का काम सीखने आई। पहले लगा लोग हंसेंगे तानें मारेंगे। लेकिन अब जिंदगी बदल चुकी है।

ये महिलाएं पहले लोगों के घरों में काम करके 3 से 4 हजार रुपए प्रति माह कमाती थी। अब 12 से 15 हजार रुपए तक कमा रही हैं। इसके लिए इन महिलाओं को अपने घरवालों के साथ-साथ परिजनों से भी लड़ना पड़ा। शिवानी रघुवंशी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि जब वह ट्रेनिंग के लिए जाती थीं तो भाई घर से बाहर नहीं निकलने देता था। ऐसे में शिवानी छुपकर ट्रेनिंग के लिए जाती थी। एक दिन उनकी कालोनी में एक बाइक खराब हो गई थी तो शिवानी ने उसे ठीक कर दिया। इसके बाद से परिजन भी सपोर्ट करने लगे। इसके पहले वह मजदूरी करके 150 रुपए रोज कमाती थी। अब वह 10 हजार रुपए कमाती हैं।

यात्रिकी सर्विस सेंटर की मैकनिक दुर्गा मीणा का कहना है कि, बाइक मैकनिक बनने में कई चुनौतियां आईं, लेकिन अब सब ठीक हो गया है। पहले जो काम करती थी उसमें पैसे भी कम मिलते थे और इज्जत भी नहीं थी। पहले लोग बाई कहते थे, अब मैडम कहते हैं। काम पर नहीं गई तो अब कोई ताने या धमकी नहीं देता है।

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