‘एलिफैंट डॉक्टर’: हाथियों को बचाने अपनी पूरी जिंदगी लगा दी, तीन दशक से छुट्टी नहीं ली
समाज में कई ऐसे डॉक्टर भी हैं, जिन्होंने इसे पैसे कमाने का जरिया ना बनाते हुए समाज सेवा में लगे हुए हैं। यह डॉक्टर जानवरों से इतना प्यार करते हैं कि अपनी पूरी जिंदगी इनकी सेवा में ही लगा रखी है। परिवार से भी ज्यादा समय इन्होंने जानवरों के साथ बिताया है। हाथी ही इनका पहला परिवार हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं, गुवाहाटी में रहने वाले जानवरों के एक ऐसे डॉक्टर की, जिन्होंने हाथियों के संरक्षण में अपना पूरा जीवन लगा दिया। यही वजह है कि इन्हें ‘Elephant Doctor’ के नाम से जाना जाता है। हाथियों के साथ इनका विशेष बंधन है। पेशे से वेटेरनरी डॉक्टर कुशल कोंवर सरमा हर साल दुनियाभर के सैकड़ों हाथियों का इलाज करते हैं और उन्होंने तीन दशक से अपने काम से छुट्टी नहीं ली।
59 साल के कुशल कोंवर सरमा का कहना है कि वह 35 साल से हाथियों के संरक्षण के लिए लगातार काम कर रहे हैं। उनका बचपन से ही जानवरों के प्रति विशेष लगाव रहा है। एक साल से वे 10 साल की लक्ष्मी की अपने घर पर ही देखभाल कर रहे हैं। पद्मश्री से सम्मानित सरमा का कहना है कि हाथियों से जुड़ना एक सपने जैसा है और मुझे इसमें बहुत मजा आया। मैं हाथियों को pre-emptive और प्रतिक्रियाशील उपचार देता हूं। सरमा अपने पूरे करियर में अनगिनत जानवरों की जान बचाते हुए भारत और विदेशों में सालाना लगभग 800 हाथियों का इलाज करते हैं।
इंडोनेशिया के जंगल तक हजारों हाथियों की जान बचाई…
भारत के वन्यजीव समुदाय में ‘एलिफैंट डॉक्टर’ के नाम से मशहूर कुशल कोंवर जब हाथियों के बारे में बात करते है तो उनका चेहरा खुशी से खिल उठता है। डॉक्टर सरमा ने असम और पूर्वोत्तर राज्यों के जंगलों से लेकर इंडोनेशिया के जंगल तक हजारों हाथियों की जान बचाई है। अपनी जान की परवाह किए बगैर हाथियों के इलाज के लिए जंगलों में घूमने वाले डॉक्टर सरमा ने मीडिया से बातचीत में कहा था कि, ” हाथियों के साथ अपने जीवन का जितना समय गुजारा है उतना समय अपने परिवार को नहीं दे पाया हूं। खासकर असम के हाथियों से मुझे बहुत प्यार है। असम के हाथियों की गतिविधियों से उनकी भाषा समझ लेता हूं। उनसे संकेत में बात करता हूं। उनके लिए खाने का सामान लेकर आता हूं।
साल 2020 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाजा है। वे देश के पहले पशुचिकित्सक है, जिन्हें पद्मश्री मिला है। वे कहते हैं कि जब ‘मैं वेटरनरी डॉक्टर बना और वेटरनरी कॉलेज का प्रोफेसर बना तो हाथियों से मेरा रिश्ता और गहरा हो गया’।
कुशल कोंवर ने अपना बचपन असम के कामरूप जिले के बारामा गांव में जंगलों और छोटी नदी के पास बिताया है। वे कहते हैं कि, “मेरी दादी के पास लक्ष्मी नाम का एक हाथी था – हम सबसे अच्छे दोस्त थे, सारा दिन एक साथ बिताते थे,” उन्होंने कहा, “मैं हाथियों से इतना प्यार करने लगा कि इस बुढ़ापे में भी, मैं उनका सपना देखता हूँ!”