द्रोपदी मुर्म : संघर्ष से सफलता तक
(theperfectindia.com) अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने कभी शिक्षक के रूप में बच्चों को पढ़ाया था। एक मां के रूप में दो बेटों को खोने का दर्द और फिर पति की असमय मृत्यु ने एक महिला के रूप में उन्हें सशक्त बनाया। पति और बेटों को खोने के दर्द का दिल में छिपाए रखकर उन्होंने अपनी बेटी की परवरिश की और बेटी को मां के साथ ही पिता का भी प्यार दिया। आदिवासी समाज से होने के कारण समाज की बंदिशों के बीच भी उन्होंने अपना एक मुकाम हासिल किया है। एनडीए की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रोपदी मुर्म का जीवन और उनका संघर्ष किसी भी महिला के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है।
कभी बच्चों को पढ़ाती थी अब बनेंगी देश की प्रथम नागरिक…
राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने भुवनेश्वर के रामादेवी वुमन कॉलेज से आर्ट्स में ग्रैजुएशन किया। इसके बाद उन्हें ओडिशा सरकार के सिंचाई और बिजली विभाग में जूनियर असिस्टेंट के तौर पर नौकरी मिल गई। नौकरी के साथ ही उन्होंने रायरंगपुर में श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर में मानद सहायक शिक्षक के तौर पर भी काम किया। उनके जीवन का संघर्ष यहीं नहीं थमा था। महिला और आदिवासी समाज से होने के कारण उनको आगे बढ़ने में कई मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा है।
बता दें कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने झारखंड की राज्यपाल रह चुकीं द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार घोषित किया है। द्रौपदी मुर्मू आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखती हैं। वे ओडिशा के रायरंगपुर से विधायक रह चुकी हैं। 64 साल की मुर्मू के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनने तक का सफर बेहद कठिन रहा है। खासकर, पर्सनल लाइफ की बात करें तो वो अपने दो बेटों और पति को खो चुकी हैं।
द्रौपदी मुर्मू का जन्म ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में 20 जून, 1958 को हुआ था। वो आदिवासी संथाल परिवार से आती हैं। उनके पिता का नाम बिरंची नारायण टुडू था। वहीं मुर्मू के दादा पंचायती राज सिस्टम में गांव के सरपंच थे। द्रौपदी मुर्मू की शादी श्याम चरण मुर्मू से हुई है। उनके तीन बच्चे (दो बेटे और एक बेटी) हुए, जिनमें से अब सिर्फ एक बेटी ही बची है। मुर्मू के पति और दो बेटे अब इस दुनिया में नहीं हैं।
जवानी के दिनों में ही विधवा होने के साथ ही अपने दो बेटों खो चुकीं द्रौपदी मुर्म ने जीवन में काफी संघर्ष देखा है। पति और बेटों की मौत के बाद उन्होंने अपनी बेटी इतिश्री की अकेले ही परवरिश की। इतना ही नहीं, उन्होंने अकेले ही अपनी बेटी की शादी की। उनकी बेटी इतिश्री ने गणेश हेम्ब्राम से शादी की है।
द्रौपदी मुर्मू ने 1997 में ओडिशा के रायरंगपुर नगर पंचायत में पार्षद का चुनाव लड़ा और जीतीं। इस तरह उनके पॉलिटिकल करियर की शुरुआत हुई। इसके बाद 2000 में वो रायरंगपुर से पहली बार विधायक बनीं। बाद में उन्हें 2002 से 2004 के बीच भाजपा-बीजेडी सरकार में मंत्री बनने का मौका मिला।
18 मई 2015 को द्रौपदी मुर्मू झारखंड की नौवीं राज्यपाल बनीं। 12 जुलाई, 2021 तक वो इस पद पर रहीं। बता दें कि मुर्मू अगर राष्ट्रपति बनती हैं तो अनुसूचित जनजाति वर्ग (एसटी) से देश की पहली महिला राष्ट्रपति होंगी।