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कैंसर को मात दी, गरीबों को खाना खिलाने बैच दी करोड़ों की प्रापर्टी, ऐसी है पद्मश्री लंगर बाबा की कहानी

कैंसर को मात दी, गरीबों को खाना खिलाने बैच दी करोड़ों की प्रापर्टी, ऐसी है पद्मश्री लंगर बाबा की कहानी

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चंडीगढ़. किसी को एक वक्त का खाना खिलाने की भी कुछ लोग हिम्मत नहीं जुटा पाते। लेकिन चंडीगढ़ में एक शख्स ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी ही दूसरों को खाना खिलाने में निकाल दी। जी हां, हम बात कर रहे हैं सेक्टर-23 चंडीगढ़ में रहने वाले जगदीश लाल आहूजा की। इनकी जिंदगी प्रेरणा देती है कि अगर कुछ नेक काम करने की नीयत है तो फिर भगवान भी साथ देता है। यही वजह है कि 85 साल की उम्र में भी वह रोजाना सैकड़ों लोगों के लिए खाने की व्यवस्था कर रहे हैं। आहूजा की इसी सेवा भाव को देखते हुए लोग उन्हें लंगर बाबा और उनकी पत्नी को जय माता दी कहते हैं। जगदीश लाल आहूजा ने 40 साल पहले बेटे के जन्मदिन पर लंगर सेवा शुरू की थी। पहली बार उन्होंने सेक्टर-26 मंडी में लंगर लगाया था। वर्ष 2000 में जब उनके पेट का ऑपरेशन हुआ तो पीजीआइ के बाहर लोगों की मदद करने का फैसला लिया और तब से उनका चंडीगढ़ पीजीआइ के बाहर लंगर लगाने का सिलसिला जारी है।

पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित देश के चुनिंदा लोगों में एक नाम लंगर बाबा का भी है। जगदीश लाल पिछले 40 साल से भूखे और जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाते आ रहे हैं, जिसकी वजह से इनका नाम ही लंगर बाबा पड़ गया। आइए जानते हैं इस नाम के पीछे की वह प्रेरणादायक कहानी कि किस तरह भूखे मरने पर मजबूर एक व्यक्ति करोड़पति बना और, फिर दादी से मिली प्रेरणा को निभाने के लिए अपनी दर्जनभर के करीब संपत्ति बेच चुके हैं।

जगदीश लाल आहूजा 12 साल की उम्र में पेशावर से आकर मानसा में बसे थे। पटियाला में रहेड़ी लगाई और फिर जब चंडीगढ़ शिफ्ट हुए तो सिर्फ 4 रुपए 15 पैसे जेब में थे।

कैंसर को मात दी…

जगदीश लाल आहूजा को पेट में कैंसर हो गया था, फिर भी इन्होंने अपनी पीजीआई हॉस्पिटल के सामने पिछले 21 सालों से चला रहे लंगर सेवा को बंद नहीं होने दिया। उन्होंने कैंसर को मात दी और लंगर सेवा निरंतर जारी रखी। सर्दी हो, गर्मी या फिर बारिश, उनका लंगर कभी बंद नहीं हुआ। मरीज व उनके तीमारदार भी उनके लंगर का हर रोज इंतजार करते हैं। 85 की उम्र हो गई है, इसलिए वह ज्यादा चल फिर नहीं सकते हैं, लेकिन सेवा करने का उनका जज्बा आज भी कायम है। उनका कहना है कि जब तक वह हैं तब तक लंगर बंद नहीं होगा।

करोड़ों की प्रॉपर्टी बेच दी…

कहते हैं कि कई बार लंगर को जारी रखने के लिए जब पैसों की कमी होने लगी तो उन्होंने इस लंगर को चालू रखने के लिए अपनी करोड़ों की प्रॉपर्टी भी बेच दी। यही वजह है कि सालों से रोजाना दोपहर 1 से 3 बजे के बीच गरीब लोगों को खाना निरंतर जारी है। चंडीगढ़ के बनाना किंग (केलों के कारोबारी) के नाम से भी मशहूर व्यवसायी जगदीश लाल आहूजा पीजीआईएमएस के बाहर दाल, रोटी, चावल और हलवा बांट रहे हैं, वो भी बिना किसी छुट्टी के। उनके कारण पीजीआईएमएस का कोई मरीज रात में भूखा नहीं सोता है। मजबूरों का पेट भरते हैं, वहीं इससे भी बड़ी रोचक बात तो यह है कि यह अपनी जमीन-जायदाद सब बेच चुके हैं।

रेलवे स्टेशन पर नमकीन दाल बेचते थे…

आहूजा भारत-पाकिसतान के बंटवारे के महज 12 साल की उम्र में पंजाब के मानसा शहर आए थे। जिंदा रहने के लिए रेलवे स्टेशन पर उन्हें नमकीन दाल बेचनी पड़ी, ताकि उन पैसों से खाना खाया जा सके और गुजारा हो सके। कुछ समय बाद वह पटियाला चले गए और गुड़ और फल बेचकर जिंदगी चलाने लगे और फिर 1950 के बाद करीब 21 साल की उम्र में आहूजा चंडीगढ़ आ गए। उस समय चंडीगढ़ को देश का पहला योजनाबद्ध शहर बनाया जा रहा था। यहां आकर उन्होंने एक फल की रेहड़ी किराये पर लेकर केले बेचना शुरू कर दिया। उस समय को याद करते हुए वह कहते हैं, ‘मुझे याद है कि इस शहर में मैं खाली हाथ आया था, शायद 4 रुपए 15 पैसे थे मेरे पास। यहां आकर मुझे धीरे-धीरे पता लगा कि यहां मंडी में किसी ठेले वाले को केला पकाना नहीं आता है। पटियाला में फल बेचने के कारण मैं इस काम में माहिर हो चुका था। बस फिर मैंने काम शुरू किया और मेरी किस्मत चमक उठी और मैं अच्छे पैसे कमाने लगा।’

दादी से मिली आहूजा को प्रेरणा

लोगों को भोजन करवाने की प्रेरणा उनकी दादी माई गुलाबी से मिली, जो गरीब लोगों के लिए अपने शहर पेशावर में इस तरह के लंगर लगाया करती ​थी। आहूजा मीडिया से बातचीत में कहा हैं कि 1981 में उन्होंने बेटे के जन्मदिन पर लंगर लगाने का क्रम शुरू किया था, जब सेक्टर-26 मंडी में लंगर लगाया। लंगर में सैकड़ों लोगों की भीड़ जुटी। खाना कम पड़ने पर पास बने ढाबे से रोटियां मंगवाई गई। उसके बाद से मंडी में लंगर लगने लगा।

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