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‘एग्रीइंटरप्रिनियोरिशप’ की चार कहानियां, 16 तरीके का शहद बेच मशहूर हुई ये महिला किसान

‘एग्रीइंटरप्रिनियोरिशप’ की चार कहानियां, 16 तरीके का शहद बेच मशहूर हुई ये महिला किसान

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चंडीगढ़. करीब 20-25 साल पहले जब खेती की उपज का पीक आया तो उस उपज में वैल्यू एडिशन की बात हुई। इस एग्रीइंटरप्रिनियोरिशप के लिए किसान तैयार ना थे। ऐसे में सबसे पहले शुरूआत की दोराहा के नजदीकी गांव के बलदेव सिंह ने अपना शहद खुद बेचकर। पिछले एक दशक तक सिर्फ सौ फार्मर्स ही अपना ब्रांड तैयार कर पाए थे, लेकिन अब पंजाब में करीब एक हजार ग्रीइंटरप्रिनियोर्स हैं जो नई खोज के जरिए ना सिर्फ खुद कमा रहे हैं, बल्कि दूसरों को भी रोजगार दे रहे हैं। यही वजह है कि खेती सहायक धंधों की वैल्यू एडिशन में पंजाब सबसे आगे है।

कश्मीर, कीकर का शहद बेचती हैं

अलग-अलग ‘फ्रेश हब’ ब्रांड के साथ बठिंडा की शहनाज का 16 तरीके का शहद मशहूर है। अब तो उनका स्क्रब और फेसपैक भी मार्केट में जगह बना रहा है जिसको डवलप करने के बाद उन्होंने ट्रायल शुरू कर दिया है। वह हर शहद पर लिखती हैं कि किस पराग के सहारे मक्खियां पाली गई हैं। शहद के बक्से कश्मीर में रखे गए थे, सरसों के खेतों में या कीकर के फूलों पर इसको पाला गया है, ये सभी जानकारियां शहद पर हैं। कहती हैं कि उनका प्रोसेसिंग का तरीका ऐसा है कि शहद के करीब 85 एंजाइम खराब नहीं होते। जून की गर्मी में जब कहीं करीब चार साल पहले उन्होंने इसकी शुरूआत पति के साथ पांच सौ बक्सों के साथ की थी। वह अब करीब 18 तरीके का अचार अपनी व्हाट्स अप शॉप और मार्केटिंग के जरिए दुकानों पर बेचती हैं। उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र से इस बारे में ट्रेनिंग ली है। डाइटीशियन्स की ट्रेनिंग के कारण ही वह लोगों को बता रही हैं कि स्प्राउटेड हल्दी का अचार दिन में सिर्फ आधा चम्मच खा सकती हैं तो साबुत हल्दी का अचार एक चौथाई चम्मच से अधिक नहीं खाना। वह किक्कर की फलियों और करेले का अचार व चटनी आदि भी बनाती हैं जो कई बीमारियों में लाभदायक है। सिर्फ दसवीं पास शहनाज ने बच्चे बड़े हुए तो पढ़ना शुरू किया।

रोल नंबर ही याद था उनको। डबल एमए करने के बाद उनका फैशन जानने का मन हुआ तो बीएससी व एमएएसी फैशन टेक्नोलॉजी कर डाली। इसी बीच पीएयू के कृषि विज्ञान केंद्र से ट्रेनिंग लेकर प्रोसेसिंग शुरू की। 51 की उम्र में इंटरप्रिनियोर बन कर वह खुश हैं कि उनका अपनी पहचान बनाने का सपना पूरा हुआ। उनका टर्न ओवर करीब 10 लाख रुपए का है।

खुराक से ही कंट्रोल करते हैं पोर्क की डाइट

कई शहरों में अचार सप्लाई कर रहे कोटली गांव में सिर्फ एक एकड़ जमीन वाले सुखविंदर सिंह ग्रेवाल के पिता को हमेशा बेटे की चिंता थी। बेटे ने भी छोटे-छोटे खेती सहायक धंधों के कई कोर्स किए। बी कीपिंग से शुरूआत की थी, लेकिन डेयरी का कोर्स करते हुए पिगरी का पता लगा। जिद थी कि यही करना है। ट्रेनिंग की, काम शुरू किया।

कनाडा की टीम को काम पसंद आया…

हालैंड व कनाडा से ट्रेनिंग करके काम को बढ़ाया। अपना प्रोडक्ट ही नहीं ब्रांड डवलप किया ‘कैन मेड’। उनके इस पोर्क मीट के अचार में फैट आम मीट से आधी है। कनाडियन ब्रीड से पैदा होने वाले करीब एक हजार पोर्क को वह अचार के रूप में जिम में सप्लाई करते हैं। आम पोर्क के अचार में 24-25 पर सेंट तक फैट होती है, लेकिन ग्रेवाल के अचार में 12-13 परसेंट। वह इसको खुराब के जरिए मैनेज करते हैं। मल्टी विटामिन, सोया ऑयल केक, मक्की, चावल आदि की खुराक के कारण उनका मीट पौष्टिक होता है जो बॉडी बिल्डिंग बनाने या सिक्स पैक एब्स बनाने के शौकीन लोग इस्तेमाल करते हैं। लोगों की डिमांड पर उन्होंने अब चिकन के प्रोडक्ट्स भी शुरू किए हैं। उनका टर्न ओवर करीब 35 लाख रुपए का है।

कांटे वाली मछली के तैयार किए प्रोडक्ट्स

इसड़ से करीब दो किलोमीटर आगे गांव क्रोदियां के जसबीर सिंह ने मछली पालन का काम तो डेढ़ दशक पहले से शुरू किया था, लेकिल करीब एक साल पहले ही उन्होंने मछली से प्रोडक्ट्स बना कर बेचना भी शुरू कर दिया है। फिश पांड में होने वाली इस कांटेदार मछली का प्रोडक्ट बनाने वाले वह पहले किसान हैं। इसके लिए वह फिलहाल वेटरनरी यूनिवर्सिटी लुधियाना की मदद ले रहे
हैं। तीन एकड़ से शुरू हुआ मछली पालन का सफर अब 37 एकड़ तक पहुंच चुका है।

पिछले साल उन्होंने ताजपुर रोड फिश मार्केट में शॉप लेकर फिश बॉल, फिश कटलेट, फिंगर, सॉसेज, पिकल आदि बनाने और बेचने शुरू किए। वह दूसरे फार्मर्स की मछली लेकर भी प्रोडक्ट तैयार कर रहे हैं। फिलहाल नो प्रोफिट-नो लॉस पर शुरू हुए इस काम को वह लुधियाना के पॉश एरिया में आउटलेट खोल कर और स्टोर्स को सप्लाई करने की योजना पर काम कर रहे हैं। उनकी अपनी 10 एकड़ जमीन है।

फिश ऑयल और फिश सिरका किया है तैयार

मुल्लांपुर के नजदीकी गांव के किसान राजविंदर सिंह लंबे समय से फिश फार्मिंग से जुड़े हैं। उन्होंने तालाब की मछली से फिश का ऑयल और फिश सिरका तैयार किया है। राजविंदर का दावा है कि फिश ऑयल अब तक सिर्फ समुद्री मछली से ही तैयार किया जा सकता है। ये कैप्सूल के रूप में 10 हजार रुपए किलो तक है जबकि वह इसे एक हजार रुपये में बेच रहे हैं। फिलहाल उन्होंने इसको ट्रायल बेस पर शुरू किया है। अब वह इसका स्टैंर्डडाइजेशन करने की प्रक्रिया में हैं ताकि वह कमर्शियली इसको मार्केट में उतार सकें। इसको शुरू करने के लिए राजविंदर ने पंजाब सरकार से भी मदद मांगी है।

जब करीब दो दशक पहले हमने एग्रीइंटरप्रिनियोरिशप पर काम शुरू किया था तो कोई तैयार नहीं था। अब तो पंजाब में करीब एक हजार किसान होंगे जो अपने प्रोड्यूस की वैल्यू एडिशन करके मार्केटिंग कर रहे हैं। इसके बिजनेस मॉडल बनाने में मैं अपने स्तर पर मदद कर रहा हूं। हमारी कोशिश है ऐसे छोटे मॉडल तैयार करना जिससे पंजाब के हर ब्लॉक में किसानों की इनकम बढ़े। महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में भी इस पर कुछ काम हो रहा है। -प्रो रमनदीप सिंह, बिजनेस मैनेजमेंट, पीएयू

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